वीर संवत 2550, पौष सूद 9 से पौष वद 1, शुक्रवार, 19 जनवरी से शुक्रवार, 26 जनवरी, 2024

अध्यात्मतीर्थ है सुवर्णपुरी, जहां बरसे ज्ञान धनेरा...

पूजन, विधि-विधान तथा मंच का आयोजन

पूजन, विधि-विधान तथा मंच का आयोजन

श्री आदिनाथ दिगम्बर जिनबिम्ब पंचकल्याणक प्रतिष्ठा महोत्सव में पूजन, विधि-विधान तथा मंच का आयोजन कमेटी का विशिष्ट कार्य था कि प्रत्येक विधि शास्त्रोक्त पद्धति से हो और उस विधि के लिये आवश्यक सामग्री तैयार हो।

तदुपरान्त प्रतिष्ठाचार्य समिति द्वारा आयोजित स्वाध्यायी देव-देवी योजना तथा शान्ति जाप योजना में संलग्न साधर्मियों की कार्यक्रम के दौरान व्यवस्था की गयी थी।

इस प्रतिष्ठा महोत्सव की एक विशिष्टता यह थी कि प्रतिष्ठा से सम्बन्धित बहुत सी विधियाँ चार अलग-अलग स्थानों पर हुई थीं—पाण्डाल में वेदी के ऊपर विराजमान जिनबिम्ब; प्रवचनमण्डप में विराजमान तीन जिनबिम्ब; सुमेरुपर्वत पर विराजमान जिनबिम्ब तथा विशालकाय बाहुबली मुनीन्द्र। पूजन कमेटी को इस सन्दर्भ में अत्यन्त सावधानी से ध्यान रखना था कि प्रतिष्ठाचार्यजी के मार्गदर्शन में प्रत्येक स्थान पर जो विधि हो, तत्प्रमाण वहाँ सभी अपेक्षित सामग्री और कार्यकर्ता, जिन्हें उस विधि सम्बन्धी जानकारी हो, वे पहले से पहुँच जायें। तदर्थ उसकी पूर्व तैयारी तो प्रतिष्ठा से पूर्व लगभग एक वर्ष पहले से शुरु हो गयी थी। जिसमें सर्व प्रथम तो प्रत्येक विधि में अपेक्षित सामग्री देश के विविध स्थानों से सोनगढ़ में एकत्रित की गयी थी।

इस कार्य हेतु इस कमेटी में देश-विदेश के 17 मुमुक्षु मण्डलों के 86 कार्यकर्ताओं ने सेवा प्रदान की। इन कार्यकर्ताओं में 22 बहिनों ने भी भाग लिया था। टीम के व्यवस्थित आयोजन के लिये ऑनलाईन मीटिंग, व्यक्तिगत मीटिंग तथा सोनगढ़ में आयोजित मीटिंग में कार्यकर्ताओं ने भाग लिया था।

इस प्रतिष्ठा के दौरान दो विशिष्ट पूजायें थीं—पंच परमेष्ठी पूजन विधान और यागमण्डल पूजा—जिसमें ट्रस्ट ने, प्रतिष्ठा समिति ने और पूजा कमेटी ने ऐसी भावना व्यक्त की थी कि अधिक से अधिक मुमुक्षु इस विधान में अष्टद्रव्य से लाभ लें। यह भावना फलीभूत हो, इस हेतु से दोनों पूजाओं के समय प्रभात में पूजन सामग्री की व्यवस्था करके इस भावना को साकार किया, जिसमें यागमण्डल पूजन विधान में 1000 से अधिक मुमुक्षु और पंच परमेष्ठी पूजन विधान में 1200 से अधिक मुमुक्षुओं ने अत्यन्त भावपूर्वक अष्टद्रव्य से पूजा की।

तदुपरान्त पंचकल्याणक की पूजा, नित्य नियम पूजा और विशिष्ट पूजाओं में (जैसे कि शान्तिजाप संकल्प, ध्वजारोहण, इन्द्र प्रतिष्ठा, भगवान को वेदी में विराजमान करने की तथा बाहुबली मुनीन्द्र के महामस्तकाभिषेक आदि पूजाओं में) इन्द्र-इन्द्राणी, अष्टकुमारी देवियाँ, राजा-रानी, देव-देवियाँ तथा 100 से 150 मुमुक्षु पूजा का लाभ लेते थे।

वेदी शुद्धि की घटपूरणविधि 30X30 फीट की रंगोली में स्थापित 1008 कलशों में अति भाव से की गयी थी। तत्पश्चात् 21 सामग्रियों के साथ प्रतिष्ठाचार्य समिति और प्रशिक्षित कार्यकर्ताओं द्वारा प्रत्येक लाभकर्ता ने भावसहित वेदीशुद्धि की थी।

भगवान के जन्मकल्याणक के दिन डेढ़ कि.मी. के अन्तराल में स्थित पाण्डुकशिला पर शुद्ध प्रासुक जल से 4500 मुमुक्षुओं ने भगवान के अभिषेक का लाभ प्राप्त किया था।

150 भगवन्तों की अंकन्यास विधि चार अलग-अलग स्थानों में शुद्ध धोती-दुपट्टा, चन्दन, अपेक्षित सामग्री, प्रतिमा में मातृका अंक के अंकों का लेखन और तदुपरान्त विधिसह चार अलग स्थानों में समय पर सम्पन्न हुई। तथा भगवान को विराजमान करने की विधि पूर्ण सामग्रीसह हर्षोल्लासपूर्वक सम्पन्न हुई। प्रतिष्ठा के पश्चात् भाववाही भक्ति के साथ चँवर स्थापित किये गये। लगभग 5000 मुमुक्षुओं द्वारा बाहुबली मुनीन्द्र का महामस्तकाभिषेक और जिनेन्द्र भगवन्तों के मस्तकाभिषेक के कार्यक्रम पूजन-विधानपूर्वक उत्साहपूर्वक सम्पन्न हुए।

इस समग्र विधि-विधान में शुद्ध धोती-दुपट्टा की उपलब्धि का भगीरथ कार्य कुशलरूप से सम्पन्न किया गया। यह पंचकल्याणक महोत्सव ज्ञानी-धर्मात्माओं की कृपादृष्टि से निर्विघ्न पूर्ण हुआ।