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| 111 | पुज्य गुरुदेवश्रीनां परिवर्तन विषे. |
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(Unknown)
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| 112 | 'जो इच्छो परमार्थ तो, करो सत्य पुरुषार्थ'...परनी पर्यायने फेरवी शकाय नही |
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(Unknown)
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| 113 | ज्ञाताधारा प्रगट करवा माटे शुं करवुं? |
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(Unknown)
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| 114 | पुज्य गुरुदेवश्रीनां वचनाम्रुत बोल नं.१७मां आवे छेः 'अनंत गुण्स्वरुप आत्मा,तेना एकरुप स्वरुपने द्रष्टिमां लइ तेने एकने ज ध्येय बनावी | ||
| 115 | ज्ञायकने द्रष्टिनो विषय बनाव्या पछी जे बाह्य पदार्थो,संयोगी पदार्थो नैमित्तिक पदार्थो के नैमित्तिकभावो थया करे छे |
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(Unknown)
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| 116 | तेनाथी (विभावथी) छुटकारो ज्ञानीना वचनोथी थाय के पोताने करवो पडे? |
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(Unknown)
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| 117 | पुज्य गुरुदेवश्रीनां टेप प्रवचनो विषे.. |
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(Unknown)
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| 118 | पुज्य गुरुदेवश्रीने सांभळ्या न होय तो टेप सांभळवाथी कोइने सम्यग्दर्शन थइ शके? |
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(Unknown)
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| 119 | श्रीमदजी अने गुरुदेवश्रीने निसर्गज के अधिगमज सम्यग्दर्शन हतुं? |
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(Unknown)
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| 120 | आ बधानी (द्रव्य-पर्यायनी) भिन्नता कार्य (भाव) अपेक्षाए छे के क्षेत्र संबंधी..(अपेक्षाए) |
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(Unknown)
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