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स्वात्मानुभवी पूज्य बहिनश्री चंपाबहिन

Bahenshree

परम पूज्य गुरूदेवके शासनके ‘धर्मरत्न’
* स्वात्मानुभवी पूज्य बहिनश्री चंपाबहिन *

परमोपकारी पूज्य गुरूदेव श्री कानजीस्वामीको वि.सं. 1978(ई.स. 1922)में भगवत्कुन्दकुन्दाचार्यदेवप्रणीत समयसार-परमागमका पावन योग हुआ। उससे उनके सुप्त आध्यात्मिक पूर्वसंस्कार जागृत हुए, अंतःचेतना विशुद्ध आत्मतत्त्व साधनेकी ओर मुडीपरिणति शुद्धात्माभिमुखी बनी,और उनके प्रवचनोंकी शैली अध्यात्मसुधासे सराबोर हो गई। जिसके प्रतापसे पूज्य बहेनश्रीका जीवन धन्य हुआ।

पूज्य बहिनश्री चंपाबेन-जिनका जन्म दि.7-08-1914 भादों (गु.श्रावण) कृष्णा 2, शुक्रवारके दिन माता तेजबा व पिता जेठालालभाईके धार्मिक संस्कारोंसे सिक्त हुआ था व बचपनसे ही धर्म, वैराग्य व भक्तिमय संस्कारोंसे अभिसिंचित हुआ था, उन्हें लघु वयमें ही पूज्य गुरूदेवश्रीकी शुद्धात्मस्पर्शी वज्रवाणीके श्रवणका परम सौभाग्य प्राप्त हुआ था। उससे उनके सम्यक्त्व-आराधनाके पूर्वसंस्कार पुनः साकार हुए। उन्होंने तत्त्वमंथन के अंतर्मुख उग्र पुरूषार्थसे फागण वद 10 वि.सं. 1989 (ई.स. 1933में) 18 वर्षकी बालावयमें निज शुद्धात्मदेवके साक्षात्कारको प्राप्त कर निर्मल स्वानुभूति प्राप्त की। दिनोंदिन वृद्धिगत-धारारूप वर्तती उस विमल अनुभूतिसे सदा पवित्र प्रवर्तमान उनका जीवन, पूज्य, गुरूदेवकी मांगलिक प्रबल प्रभावनाछायामें मुमुक्षुओंको सदा पवित्र जीवनकी प्रेरणा देता रहा है।

पूज्य बहिनश्रीकी पवित्रताकी छाप पूज्य गुरूदेवश्रीके हृदयमें थी ही परंतु सविशेष जब विक्रम संवत् 1989 (ई.स.1933) में राजकोटमें उन्हें ज्ञात हुआ कि बहिनश्रीको सम्यग्दर्शन एवं तज्जन्य निर्विकल्प आत्मानुभूति प्रगट हुई है, यह ज्ञात होने पर उन्होंने अध्यात्मविषयक गंभीर कसोटीप्रश्न पूछकर बराबर परीक्षा की, और परिणामतः पूज्य गुरूदेवने सहर्ष स्वीकार करते हुए कहाः “बहिन! तुम्हारी दृष्टि और निर्मल अनुभूति यथार्थ है।”

असंग आत्मदशाकी प्रेमी पूज्य बहिनश्रीको कभी भी लौकिक व्यवहारके प्रसंगोंमें रस आया ही नहीं था। उनका अंतरध्येयलक्षी जीवन सत्श्रवण, स्वाध्याय, मंथन और आत्मध्यानसे समृद्ध था। आत्मध्यानमयी विमल अनुभूतिमेंसे उपयोग बाहर आने पर एक बार वि.सं. 1993(ई.स.1937)की वैशाख (गु.चैत्र) कृष्णा अष्टमीके दिन उनको उपयोगकी निर्मलतामें भवांतरों सम्बन्धी सहज स्पष्ट जातिस्मरणज्ञान प्रगट हुआ। धर्मसम्बन्धी अनेक प्रकारोंकी स्पष्टताका-सत्यताका वास्तविक बोध देनेवाला उनका वह सातिशय स्मरणज्ञान आत्मशुद्धिके साथ-साथ क्रमशः बढता गया, जिसकी पुनीत प्रभासे पूज्य गुरूदेवके मंगल प्रभावना-उदयको चमत्कारिक वेग मिला।

सहज वैराग्य, शुद्धात्मरसीली भगवती चेतना, विशुद्ध आत्मध्यानके प्रभावसे पुनःप्राप्त निजआराधनाकी मंगल डोर तथा ज्ञायकउद्यानमें क्रीडाशील विमल दशामें सहजस्फुट अनेक भवका जातिस्मरणज्ञान इत्यादि विविध आध्यात्मिक पवित्र विशेषताओंसे विभूषित पूज्य बहिनश्री चंपाबेनके असाधारण गुणगंभीर व्यक्तित्वका परिचय देते हुए पूज्य गुरूदेव स्वयं प्रसन्नहृदयसे अनेक बार प्रकाशित करते हैं किः-

“बहिनोंका महान भाग्य है कि चंपाबेन जैसी धर्मरत्न इस कालमें पैदा हुई हैं। बहिन तो भारतका अनमोल रतन है। अतीन्द्रिय आनंदका नाथ उनको अंतरसे जागृत हुआ है। उनकी अंतरकी स्थिति कोई और ही है। उनकी सुदृढ़ निर्मल आत्मदृष्टि तथा निर्विकल्प स्वानुभूतिका जोड़ इस कालमें मिलना कठिन है।…असंख्य अरब वर्षका उन्हें जाति- स्मरणज्ञान है। बहिन ध्यानमें बैठती हैं तब कई बार वह अंतरमें भूल जाती हैं कि मैं महाविदेहमें हूँ या भरतमें!!….बहिन तो अपने अंतरमें-आत्माके कार्यमें-ऐसी लीन हैं कि उन्हें बाहरकी कुछ पड़ी ही नहीं है। परंतु हमें ऐसा भाव आता है कि बहिन कई वर्ष तक छिपी रहीं, अब लोग बहिनको पहिचानें।”….

-ऐसे वात्सल्योर्मिभरे भावोद्गारभरी पूज्य गुरूदेवकी मंगल वाणी में जिनकी आध्यात्मिक पवित्र महिमा सभामें अनेक बार प्रसिद्ध हुई है उन पूज्य बहिनश्री चंपाबेनके, उन्होंने महिला-शास्त्रसभामें उच्चारे हुए-उनकी अनुभवधारामेंसे प्रवाहित-आत्मार्थपोषक वचन लिपिबद्ध अमूल्य वचनामृतसंग्रह “बहिनश्रीके वचनामृत” नामक ग्रंथ व उस पर पूज्य गुरूदेवश्रीके प्रवचन 4 भागोंमें प्रकाशित हुए है। इतना ही नहीं, उनके सम्यक्त्वपूर्व व सम्यक्त्व पश्चातके पत्र व लेखादि संग्रह “बहिनश्रीकी साधना और वाणी” के रूपमें मुमुक्षुओंको आत्मार्थताकी अनुपम प्रेरणा व स्वरूप दिखाता अनुपम ग्रंथ भी प्रकाशित हो चुका है। तद् उपरांत पूज्य बहिनश्रीके स्वयंलिखित जातिस्मरणज्ञानका चितार भी “बहिनश्रीका ज्ञानवैभव” नामक ग्रंथ व उनके जीवनका दिग्दर्शन करानेवाला “आराधनाकी देवी” नामक सचित्र पुस्तक भी

प्रकाशित हो चुकी है। इस तरह पूज्य बहिनश्रीके आध्यात्मिक जीवनकी विविध सामग्रीसे हम भी अपने जीवनको आत्महितके ओर गढें-यही भावना।

परम पूज्य सद् गुरूदेवके शासनकी प्रभावनामें पूज्य बहिनश्री चंपाबेनका विशेष सहयोग रहा। अनुभूति एवं आत्म- साधनामें रत रहते हुए भी तात्त्विक चर्चा द्वारा पूज्य गुरूदेवश्रीके हृदयके मर्म, सूक्ष्मन्यायोंकी स्पष्टता कर मुमुक्षुमंडल पर अति उपकार किया। उनकी देव-गुरू-शासनकी भक्तिके कारण सुवर्णपुरी सदा जयवंत रही।

तुझ ज्ञान-ध्याननो रंग अम आदर्श रहो।
हो शिवपद तक तुझ संग, माता ! हाथ ग्रहो।।