श्री जैन स्वाध्यामंदिर

Swadhyay_Mandir

श्री जैन स्वाध्यामंदिर

Star of India में पूज्य गुरूदेवश्रीका निवास एक जीवंत तीर्थ बन गया। अनेकानेक भक्तजन आने लगे। प्रवचनके समयमें जगह कम पडती थी। अतः भक्तोंने एक नूतन कक्ष बनाया। भक्तजन, “इस कक्षका क्या नाम रखा जाए ?”- ऐसा विचारते थे। उस समय पूज्य गुरूदेवश्रीने कहा यह स्वाध्याय करनेके लिए है अतः स्वाध्यायमंदिर नाम रक्खो। भक्तोंने प्रार्थना कि-“आपको उसमें पधारना है,” सत् के प्रेमी, अत्यंत निस्पृह निरागी महात्माने कहा – “किस क्षण वैराग्यकी धूनमें मैं जंगलमें चला जाऊँ यह मालूम नहीं।” मुझे मठके रूपमें यह संभालना नहीं है। भक्तोंने अश्रुभीने हृदयसे अत्यंत नम्रतासे प्रार्थना कि-“प्रभो ! जितनी देर आप चाहों उतना ही रहना पर हमारी भावना पूरी कीजिए।”

भक्तजनोंकी भावना पूरी हुई। सोनगढ़ का यह प्रथम मंगल प्रसंग था। परम कृपानाथ पूज्य गुरूदेवश्रीके आदेशसे इस स्वाध्यायमंदिरके आलेमें पूज्य बहिनश्री चंपाबेनके करकमलसे ‘श्रीसमयसारजी परमागम’ बिराजित करने का निर्णय हुआ। 25’ x 50’ का स्वाध्यायमंदिर ! ऐसा लगता था मानों तैरती स्टीमर ! भक्तोंने इसे खूब सजाया था। सजावटका दृश्य ऊपर बगीचा हो ऐसा था। पूरे कक्षकी दिवालों पर सूत्र लिखे थे; जो पंडितरत्न हिम्मतभाई सूरतसे कपड़े पर लिखकर ले आए थे। भक्तजन कुछ दिन पहलेसे ही स्वाध्यायमंदिरके पास हाथमें छोटे छोटे ध्वज लेकर भक्ति करते थे। “सुरेन्द्रो उतरो गगनके आज स्वर्णके स्वाध्याय मंदिरमें।” वैशाख (गुजराती) कृष्णा 8को वि.सं. 1994 (ई.स.1938) के मंगल दिन स्टार ओफ इंडियासे पूज्य गुरूदेवश्रीको भक्तजन विनती कर ले आए। बीचसे बहनें एवं पूज्य बहिनश्री चंपाबेन अपने करकमलोंमें चांदीके थाल में बीच में से श्री समयसार शास्त्र रखकर शामिल हुई। धूमधामसे भक्ति करते हुए स्वाध्यायमंदिर पहुँचे। पूज्य बहिनश्रीके द्वारा समयसारजीकी स्थापना हुई। श्री समयसार शास्त्रकी मंगल स्थापना ब्र. शीतलप्रसादजीने प्रतिष्ठाविधि सह कराई। उस समय प्रवचनमें पूज्य गुरूदेवश्री समयसारजीका अचिंत्य महात्म्य एवं उसके गंभीर भावोंका रहस्य खोल रहे थे व उनके हृदयमें भगवान कुंदकुंदाचार्यके प्रति अपार महिमा उछल रही थी; वह मानों पूर्वके कुछ स्मरणोंको ही उद्योत न कर रहे हों ! – ऐसा स्पष्ट प्रतीत होता था। इन्हीं दिनोंमें पूज्य गुरूदेवश्रीने बहिनश्री चंपाबेनको बहुमानसूचक ‘भगवती’ बिरुदसे कृपान्वित किया।

धर्मध्वज फरके छे मोरे मंदिरिये, स्वाध्यायमंदिर स्थपाए अम आंगणिए।