श्री समवसरण मंदिर

श्री समवसरण मंदिर

श्री समवसरण मंदिर

वि. सं.1997 (ई.स.1941) सुवर्णपुरीके जिनमंदिरमें श्री सीमंधरादि जिनभगवन्तोंकी प्रतिष्ठाके बाद दूसरे ही वर्ष भक्तोंके द्वारा समवसरण की रचना की गई। वि. सं.1998 (ई.स.1942) के वैशाख (गुजराती) कृष्णा छठको समवसरण जिनमंदिरमें चतुर्मुखी सीमंधर भगवानकी प्रतिष्ठा कराई गई।

इस प्रसंग पर भगवानके बाद जब सभामें कुंदकुंदाचार्यदेवकी प्रतिमा स्थापित की गई तो भक्तोंको ऐसा लगता था कि साक्षात् सीमंधर भगवानके समवसरणमें कुंदकुंद भगवान कैसे लगते होंगे? जिन्होंने देखा उनको कितना उल्लास आया होगा ?

इस समवसरणमें आगमोक्त सुंदर आठ भूमियाँ हैं। मुनि, अर्जिका, देव-मानव-तिर्यन्चकी सभाएँ हैं। तीन पीठिका पर कमलासन पर प्रभु बिराजते हैं। मुनियोंकी सभामें कुंदकुंदाचार्य हाथ जोड़े खड़े हैं।

प्रथम धुलिशाल कोट, पीछे मंदिर भूमि, द्वितीय खाई भूमि, तीसरी पुष्पवाटिका, चौथी कल्पवृक्षभूमि, पाँचवी ध्वजभूमि, छठ्ठी वन भूमि, सातवीं स्तूप भूमि और आठवीं सभाभूमि-इस तरह आठ भूमियाँ अति मनोहर है। बीच बीचमें रत्नके स्तंभ, मणिकी दिवारों और सोने-रूपेके गढ़ बने हैं। मंदिरकी दिवारों पर समवसरण स्तुति संगमरमर पर आलेखित है जो पं. हिम्मतभाई जे. शाहने बनाई है जिस पर पूज्य गुरूदेवश्रीने प्रवचन दिए थे, एवं “रे रे सीमंधरजिनना विरहा पड्या आ भरतमां” ये पंक्ति आते नैनोंसे आंसू गिरते थे।

समवसरणकी दिवारों पर चार सुंदर चित्र अंकित है। 1-कुंदकुंदभगवानकी दीक्षा एवं आचार्यपदवी, 2-सीमंधर भगवानके चार कल्याणक, 3-कुंदकुंद भगवानका विदेहगमन एवं चक्रीका प्रश्न व “राजकुमार तीर्थंकर होंगे” -ऐसी प्रभुकी ध्वनि और 4- पूज्य भगवती माताके सम्यग्दर्शन व भाईके साथ वार्तालाप। पूज्य माताजी (बहिनश्री चंपाबेन) समवसरणकी प्रत्येक प्रतिष्ठाकी मासिक तिथि पर भक्ति कराती थी तब पूज्य गुरूदेवश्री भी समवसरणके भीतर बैठकर भक्ति कराते थे। वह दृश्य अद्-भूत था।

अहो ! पूज्य गुरूदेवश्रीका परम प्रताप है कि विदेही समवसरणका दृश्य भरतमें आया। यह सारी रचनाएँ पूज्य बहिनश्रीने आगम एवं अपने जातिस्मरणज्ञानके आधारसे करवाई है।