141 |
छ मास सुधी मंद पुरुषार्थ सतत चालु रहे तेने सम्य्ग्दर्शन थाय |
|
(Unknown)
|
142 |
छ मास मां (सम्यग्दर्शन) न थाय तो तेने उभयाअभासी कहेवाय |
|
(Unknown)
|
143 |
पुज्य गुरुदेवश्रीनां वचनाम्रुत्मां आवे छे,"सर्वज्ञने जेणे पोतानी पर्यायमां स्थापना तेने सर्वज्ञ थवानो निर्णय आवी गयो.' |
|
(Unknown)
|
144 |
जे प्रत्यक्ष सतपुरुषनी महिमा लावता नथी अने परोक्ष |
|
(Unknown)
|
145 |
पुज्य गुरुदेवश्रीनाम वचनामरुत(बोल नं २०)मां आवे छे 'भरत चक्रवर्ती आहाअरना समये मुनिराजना आगमननी प्रतिक्षा करता |
|
(Unknown)
|
146 |
पुज्य गुरुदेवश्रीनां प्रवचनमां आवे छे के"ब्रह्मदत्त अने सुभौम चक्रवर्ती होवा छताअं ते वर्तमानमां नारकी ज छे |
|
(Unknown)
|
147 |
पुज्य गुरुदेवश्रीनां वचनाम्रुत(बोल नं ७०)मां आवे छे के "ज्ञानी अने अज्ञानीनां वचनो उपरटपके जोतां सरखा लागे |
|
(Unknown)
|
148 |
आत्मस्वरुपने समजवा माटे घणी वात पुज्य गुरुदेवश्रीऐ आपणी समक्ष मुकी छे. |
|
(Unknown)
|
149 |
आचार्य भगवान अनेक पडखेथी स्वभावनो महिमा करे छे.आपणे ते सांभळीऐ, वाचीऐ छीऐ |
|
(Unknown)
|
150 |
आत्मस्वरुपनो महिमा समजवा माटे आपे ज्ञान अने वैराग्य बे भेगा लिधा |
|
(Unknown)
|