161 |
ज्ञानीनी निर्विकल्पदशा तथा सविकल्प परिणति बन्नेमां शुं फेर छे? |
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(Unknown)
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162 |
चोथा गुणस्थानवाळा निर्विकल्प वेदन अने पांचमावाळाना सविकल्प आनंदना वेदनमां शुं फेर? |
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(Unknown)
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163 |
'हुं चैतन्य छु' अने अन्य नथी तेम नक्की करवा छतां कार्य केम थतुं नथी? |
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(Unknown)
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164 |
श्रद्धानुं बळ आपवुं जोइए,'हु ज्ञायक ज छु' |
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(Unknown)
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165 |
निर्विकल्पता सहज छे ते खबर पडे छे, पण विकल्प सहज छे ते खबर पडती नथी? |
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(Unknown)
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166 |
प्रमाण ज्ञान कामनुं छे..? |
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(Unknown)
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167 |
सम्यग्दर्शन प्राप्त करवा माटे 'बधुं क्षळिक छे' अथवा 'आत्माना स्वभावनो महिमा लाववो, |
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(Unknown)
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168 |
(गुरुदेवश्रीनां वचनाम्रुत बोल नं २मां आवे छे) 'जिनवर ते जीव छे अने जीव छे जिनवर छे |
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(Unknown)
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169 |
(गुरुदेवश्रीनां वचनाम्रुत बोल नं ८मां आवे छे) 'निमित्तनी अपेक्षा लेवामां आवे तो बंध-मोक्ष बे पडखां पडे छे |
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(Unknown)
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170 |
(गुरुदेवश्रीनां वचनाम्रुत बोल नं ९मां आवे छे) "चामडां उतारीने..गुरुनो उपकार ओळवे ते अनंत संसारी छे. |
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(Unknown)
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