पुज्य बहेनश्रीनी अम्रुतवाणी

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171 'आत्मा, तेना एकरुप स्वरुपने द्रष्टिमां कए तेने एकने ध्यावी' FLV FLV (Unknown)
172 समवसरणमां जे अनेक प्राणीओ होय छे ते ज्ञान प्राप्त करे छे FLV FLV (Unknown)
173 कोइ योग्यतावाळो जीव होय-आशय ग्रहण करी शकतो होय अने ते जीव द्र्व्य-गुण-पर्यायना स्वरुपने न जाणे FLV FLV (Unknown)
174 जे ज्ञानीनी साथे आनंद न आवे ते ज्ञान ज नथी पण अज्ञान छे FLV FLV (Unknown)
175 एकला विकल्पथी तत्त्वविचार कर्या करे तो ते जीव पण सम्यक्त्व पामतो नथी FLV FLV (Unknown)
176 स्वाध्यायमंदिरनां उदघाटन विषे.. FLV FLV (Unknown)
177 भेदज्ञाननो अभ्यास करवो ते ज राग टाळवानो साचो उपाय ते विषे.. FLV FLV (Unknown)
178 रागथी हुं भिन्न छुं एम बोलवामां तथा भावभासनमां शुं अंतर रहेतुं हशे? FLV FLV (Unknown)
179 आपना समागम पछी घणा खुलासा थया त्यारे ख्याल आवे छे FLV FLV (Unknown)
180 पुज्य गुरुदेवश्रीनां वचनाम्रुत(बोल नं ८८)मा आवे छे के "पंचम काळे भरतक्षेत्रे गरीब घरे जन्म्यो छो FLV FLV (Unknown)