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231 | ज्ञायकनुं ग्रहण कर्यु होय तेनी बाह्य प्रवुतिमां कांइ फरक देखाय के नही? |
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232 | अआवो उपदेश सांभळी व्रुतिमां मगबूताइ केम आवती नथी? |
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233 | सशुं ज्ञानीनो कोइ पण दोष देखाय तो तेना प्रत्येनो ते अविनय गणाय? |
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234 | पुज्य गुरुर्देवश्रीनो मार्ग सारी रीते चालु रहे ते माटे शुं करवुं? |
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235 | सत्संग-वैराग्य वगेरे साधक केवीरीते? ने बाधक केवी रीते? |
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236 | ज्ञानीने श्रद्धामां विकारनो निषेध छे,तेम विक्लपमां पण निषेध आवे खरो? |
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237 | वचनाम्रुतमां आवे छे के "सम्यग्द्रष्टिने राग होय छे पण तेनो रस नीतरी गयो छे'' |
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238 | आत्मामां सुख भर्यु छे तेनो निर्णय करवानी रीत शी? |
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239 | ज्ञाननो स्वभाव अनंतो छे ए तो अनंता ज्ञेयो परथी ख्यालमां आवे छे |
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240 | समयसारनी प्रथम गाथा श्री गुरु "अनंता सिद्धोने पोताना आत्मामां |
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