पुज्य बहेनश्रीनी अम्रुतवाणी

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41 रागादि भावो होवा छतां ते वखते आत्मा शुद्ध केम होइ शके? अने राअग अने आत्मानी भिन्नता कइ रीते समजी शकाय? FLV FLV (Unknown)
42 सम्यग्द्रष्टिने निरंतर ज्ञानचेतना होय छे, जेथी तेना बधा परिणाम ज्ञानमय होय छे FLV FLV (Unknown)
43 नित्य-अनित्य, सत्-असत् वगेरे विरुद्ध धर्मो ऐक साथे रीते रहे छे FLV FLV (Unknown)
44 निर्विकल्प अनुभूति वखते ज्ञानगुण परिणमन तो करतो होय छे FLV FLV (Unknown)
45 सन्यगद्रष्टि जीवने ज्ञायकनो दोर हाथमां आवी गयाअ बाद उपयोग बहारमां जाअय तो सम्यागदर्शनने कांइ हानि थाय छे? FLV FLV (Unknown)
46 छ द्रव्य, पंचास्तिकाय, नव तत्व, हेय-ज्ञेय-उपादेय, द्रव्य-गुण-पर्याय, उत्पाद-व्यय-ध्रौव्य वगेरे FLV FLV (Unknown)
47 द्रष्टि त्रिकाणी द्रव्य सिवाय कोइने स्वीकारती नथी, द्रष्टि पर्याय छे FLV FLV (Unknown)
48 सम्यग्दर्शनमां जे रीते भेदज्ञाननी धारा वर्ते छे शुं ते ज मार्गे केवळज्ञान थाय छे? FLV FLV (Unknown)
49 वचनाम्रुतमां फरमावे छे के "शुद्ध द्रव्य स्वभावनी द्रष्टि करीने पर्यायनी अशुद्धताने ख्यालमां पुरुषार्थ कर." FLV FLV (Unknown)
50 जीवनुं ज्ञान लक्षण जाणवाथी लक्ष्य ऐवो आत्मा प्रसिद्ध थाय छे FLV FLV (Unknown)