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| 61 | शुद्धनयनो विषय अंशरूप होवा छ्तां ते परिपूर्ण छे? |
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(Unknown)
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| 62 | ज्ञानी पुरुषो, अविरत सम्यगद्ष्टि जीवो आखो दिवस शुं करता हशे? |
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(Unknown)
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| 63 | अनुभूतिनी शोभा वधारे छे के आत्मद्रव्यनी शोभा वधारे छे? |
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(Unknown)
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| 64 | आत्मा परमात्मास्वरूप-सिद्धस्वरूप छे ऐम पुज्य गुरुदेवश्री फरमावता हता |
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(Unknown)
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| 65 | पुज्य गुरुदेवश्रीना वचनाम्रुतमा आवे छे के "हुं ज परमात्मा छु" ऐम नक्की कर,निर्णय कर, अनुभव कर तेमां शुं कहेवा मागे छे? |
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(Unknown)
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| 66 | आ जगतमां वस्तु छे ते पोताना स्वभावमात्र छे. आत्मा ज्ञाननो कर्ता अने विभावदशामां अज्ञान-राग-द्वेषनो कर्ता छे |
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(Unknown)
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| 67 | आत्मा अचिंत्य शकितवाळो स्वयं देव छे.जे क्षणे जागे ते क्षणे आनंदस्वरूप जागती ज्योति अनुभवमां आवे |
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(Unknown)
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| 68 | दरेक जीव परनात्मस्वरुप छे. पण अमारी पासे वर्तमानमां तो मति-श्रुतज्ञान प्रगटपणे छे |
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(Unknown)
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| 69 | आश्रयभूत तत्त्वनुं अवलंबन लेतां सम्यग्दर्शनथी मांडिने केवळज्ञान सुधीनी पर्यायो प्रगट थाय छे |
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(Unknown)
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| 70 | ज्ञान अने रागने लक्षण भेदे सर्वथा जुदा पाडो तो ज सर्वज्ञ स्वभावी शुद्ध जीव लक्षमां आवी शके |
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(Unknown)
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