81 |
वचनाम्रुतमां आवे छे के ज्ञानीने द्रष्टि साथे वर्ततुं ज्ञान बधो विवेक करे छे. |
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(Unknown)
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82 |
मुमुक्षुनुं ह्र्दय भिजायेलुं हय छे, ते विषे कहेशो. |
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(Unknown)
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83 |
'वचनाम्रुत वीत्रागनां परम शांतरस मूल,ओषध जे भवरोगना कायरने प्रतिकूळ' |
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(Unknown)
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84 |
मुनि, मुनिपणानी मर्यादा ओळंगीने विशेष बहार जता नथी. |
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(Unknown)
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85 |
नियमसार कळश ७२मां आवे छे के मुनिराज सम्यग्द्रष्टिने वंदन करे छे |
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(Unknown)
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86 |
ज्ञानीने उपयोग बहार होय अने द्रष्टि अंतरमां टकी रहे छे |
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(Unknown)
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87 |
रागादिथी भिन्न चिदानंद स्वभावनुं भान अने अनुभव थयो तेनी धर्मीने खबर पडे के नही. |
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(Unknown)
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88 |
उपयोग एक समयनो होय छे,उपयोग एक समयमां एकने जाणे तो द्रव्यने जाणे ते समये पर्यायने केवी रीते जाणे? |
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(Unknown)
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89 |
द्रव्यमां पर्याय नथी तो पछी पर्यायने केम गौण करवामां आवे छे? |
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(Unknown)
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90 |
सम्यक्त्त्वसन्मुख जीवने केवा प्रकारनुं तत्त्व चिंतवन होय छे? |
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(Unknown)
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