भारतवर्षके जैन तीर्थोंकी यात्राके समय नए नए जिनमंदिरोंका निर्माण व पंचकल्याणक प्रतिष्ठाएँ, एवं लाखों लोगोंमें गुरूवाणीके प्रचार द्वारा पूज्य गुरूदेवश्रीका लोकोत्तर प्रभावनायोग अति देदीप्यमान हो रहा था। देश एवं विदेशसे आए भव्योंका मेला लग रहा था। ऐसे समयमें परम पूज्य गुरूदेवश्रीका 80वाँ जन्ममहोत्सव बम्बई शहरमें मनाया गया। भक्तोंको सुवर्णपुरीमें एक अति भव्य परमागम मंदिर रचनेकी भावना हुई तथा भव्य समारोहपूर्वक शिलान्यास विधि हुई।
पूर्वमें परमकृपालु पूज्य गुरूदेवश्रीको जब संप्रदायमें थे तब स्वप्नमें आकाशसे संगमरमरके जिनवाणी लिखित पट्ट उतर रहे हों-ऐसे दृश्य दृश्यमान होते थे। मानों यह स्वप्न साकार हुआ। श्री समयसारादि पंच परमागमको संगमरमरके पट्ट पर उत्त्कीर्ण करवाकर दिवारों पर लगाना एवं चार लाख अक्षर सुवर्णसे लिखावानेका निर्धार हुआ।
परमागम मंदिर रचना हेतु श्री हिम्मतभाई, भाई श्री वजुभाई, श्री चिमनभाई मोदी आदि विभिन्न जगह पर जैन-जैनेतर मंदिरोंको देखने गए थे। पंडितजीने पूरा गिनतीका काम किया। इस कक्षमें कितने शीलापट्ट लगेंगे। कितने पट्टमें कितनी गाथाएँ आएगी, कितने अक्षर लिखे जाएँ, पूरे शास्त्र आ जाए इस तरहका गणितका कार्य पंडितजी हिम्मतभाईने अपनी बुद्धिमता एवं भक्तिसे किया था। परमागम सुव्यवस्थित लिखनेका गणितका पूरा ही काम उन्होंने किया। श्री हसमुखभाई वोराकी भावनाके परिणामस्वरूप इटलीसे मशीन आई और ये सभी शिलापट्ट सोनगढ़ में ही उत्कीर्ण किये गये। प्रथम पट्ट पर ओम उत्कीर्ण किया। जिनवाणीके प्रति श्रद्धा-भक्तिसे समर्पित हृदयी पूज्य गुरूदेवश्री बारबार उत्कीर्ण होते कार्यको देखने जाते थे। प्रत्येक बार जब-जब नया अधिकार टंकोत्कीर्ण होना प्रारंभ होता उस समय एक उत्सवसा बन जाता था।
अहो ! भगवान कुंदकुंदाचार्यदेवके परम भक्त पूज्य गुरूदेवश्री जिन्होंने सीमंधर कुंद मिलन नजरोंसे निहारा था और उनके प्रति जो उपकारभीनी भावना-उसके फलस्वरूप इन कुंदकुंदभगवानकी गाथा रचित पट्ट निहारते पूज्य गुरूदेवश्री एवं पूज्य भगवती माता हर्षविभोर हो जाते थे। पूज्य बहिनश्रीने तो हृदयकी गहन भावना सह उदार दिलसे अपनी सारी पूंजी जिनवाणी उत्कीर्ण करवानेमें अर्पण कर दी। अहा ! भगवती माता चंपाबहिनकी देव-शास्त्र-गुरू प्रति कितनी भक्ति और अर्पणता !
परम कृपानाथ, पूज्य गुरूदेवश्री निर्माणकार्यकी मंगलविधियाँ पूज्य भगवती माताके हाथसे करवाते थे। भक्तजनोंके हर्षके जयघोषसे सारा परिसर गूँज उठता था। परमागम मंदिरकी दिवारों पर श्री समयसार, प्रवचनसार, पंचास्तिकाय, नियमसार एवं अष्टपाहुड उत्कीर्ण किए गए हैं। बीच-बीच पुराणोंके प्रसंगकी चित्रावलियाँ भी उत्कीर्ण की गई हैं। महावीर-भगवानकी जीवनकथा व भवावलि,, नेमिनाथ भगवान एवं अदिनाथ भगवानकी भवावलि उत्कीर्ण हुई। साथमें अनेकों तीर्थ एवं अन्य तीर्थंकरोंके वैराग्यके कारण व विदेहके बीस जिनवर और आचार्योंके चित्र उत्कीर्ण किए हैं। नीचे आचार्य-कुंदकुंदप्रभुके चरण चिन्ह स्थापित किए गए है। भगवानकी ॐ ध्वनि भी स्थापित हुई हैं। अहो ! बहिनश्री चंपाबेनकी साधनाको धन्य हो। जिन्होंने स्वयंकी आराधना करते-करते अपने कहान गुरूदेवकी साधनाभूमिको भी मूर्तदेह देनेकी कैसी उत्कृष्ट भावना की एवं परम भक्तिसह मार्गदर्शन दिया।
पूज्य बहिनश्रीका मार्गदर्शन तो अद्-भुत था ही पर उनके बडे भाई वजुभाईने अपने इंजीनियरींग कौशलसे एक अनूठा मंदिर बनाया। उस समय कितने ही कहते कि यह तो Masterpiece है। साधकोंकी आगम उत्कीर्ण करानेमें कैसी श्रद्धा, भक्तिमय अर्पणता ! यह यहाँ ही देखने मिलती थी। इससे पूज्य गुरूदेवश्रीकी तपोभूमि एक उत्तम तीर्थ बन गई।
प्रतिष्ठा महोत्सव भी कोई अचिंत्य था। परम पूज्य भगवान श्री महावीरस्वामी का 2500वाँ निर्वाण महोत्सवका प्रतीकरूप वीर नि.सं. 2500 वि.सं. 2030 (ई.स.1974) फाल्गुन शुक्ला 13के शुभ दिन प्रतिष्ठाका मुहूर्त था। भव्य विशाल कुमकुम पत्रिका लिखि गई। यह प्रसंग भी सहज ही बड़ा महोत्सव बन गया।
केशर कुमकुम रे, रत्नो वर्षे सुवर्णपुरी मोझार, आव्या आव्या रे, प्रतिष्ठा महोत्सव सुवर्णपुरीने द्वार……
पत्रिकाएँ भेजी गई। देश-विदेशसे 25 हजार भक्तजन सुवर्णपुरी पधारे। परम कृपानाथ सद्-गुरूदेवकी सिंह गर्जना सुनकर भरतके भक्तजन निहाल हो जाते थे। महावीर लघुनंदनकी जयजयकार सह प्रतिष्ठा महोत्सव अति सुंदर संपन्न हुआ।
परमागम मंदिर अद्भूत है प्रभु महावीरकी मूरति है।, कुंदकुंद चरण अभिराम बने,
पंच परमागम श्रुतमंदिरमें।।