परम पूज्य गुरूदेवश्रीकी साधनाभूमि सुवर्णपुरीमें प्रशममूर्ति पूज्य बहिनश्री चंपाबेनकी-रात्रि महिलासभामें उपदेशित स्वानुभवरसभरपूर अध्यात्मवाणीके महत्त्वपूर्ण उपयोगी वचन परम पूज्य गुरूदेवश्रीकी मंगल उपस्थितिमें ‘बहिनश्रीके वचनामृत’ रूपमें वि.सं.2033 (ई.स.1977) में प्रकाशित हुए थे। उसमें दर्शाये गये तलस्पर्शी, गंभीर, सादी भाषामें प्रस्तुत न्यायोंसे पूज्य गुरूदेवश्री बहुत प्रसन्न हुए। उन्होंने कई बार इस पुस्तकको अनेक दृष्टिकोणसे पढा और अपनी प्रसन्नता व्यक्त करते हुए ट्रस्टके प्रमुख श्री रामजीभाई दोशीसे कहा कि “भाई ! यह वचनामृत पुस्तक इतना सरस (अच्छा) है कि इसकी एक लाख प्रित छपवाईये।”
‘बहिनश्रीके वचनामृत’ पुस्तकके प्रति पूज्य गुरूदेवश्रीकी प्रसन्नता देखकर कई मुमुक्षुने उसे संगमरमरके शिलापट्ट पर उत्त्कीर्ण करवानेकी भावना व्यक्त की तो परम पूज्य गुरूदेवश्रीने प्रसन्नतापूर्वक सम्मति दी। जब इस शिलापट्टोंको लगानेके लिए बहनोंके ब्रह्मचर्याश्रमके स्वाध्यायभवन आदि विभिन्न विचार पूज्य गुरूदेवश्रीके सामने प्रस्तुत होते गए, परन्तु पूज्य गुरूदेवश्रीको कहीं भी संतोष नहीं हुआ तब उन्होंने नूतन भवन निर्माणका विचार किया तथा एक नूतन कक्षमें लगाया जाय ऐसा विचार रखा। श्री रामजीभाईने पूज्य गुरूदेवश्रीकी भावना शिरोधार्य की। ‘बहिनश्री चंपाबेन वचनामृत भवन’ निर्माण करनेका निर्णय लिया गया। जिसकी शिलान्यास विधि विं.सं.2035 (ई.स.1980) के कार्तिक शुक्ला पंचमीके शुभ दिन रक्खी गई। विधिके समय परम पूज्य गुरूदेवश्री उपस्थित थे एवं उन्होंने इंटों पर स्वस्तिक आलेखन किया।
उसके पश्चात् इसी भवनको विस्तृतरूप देकर इसमें संगमरमरके शिलापट्ट पर ‘परम पूज्य गुरूदेवश्रीके वचनामृत’ एवं पंचमेरू-नंदीश्वरके जिनेन्द्र भगवंतोंकी स्थापना भी की जाए ऐसा ट्रस्टने निर्णय किया। पूज्य भगवती बहिनश्री चंपाबेनकी मंगल छायामें पंचमेरू-नंदीश्वर जिनालयका शिलान्यास किया गया।
श्री दिगंबर जिन पंचमेरू-नंदीश्वर जिनालय, ‘गुरूदेवश्री कानजीस्वामी वचनामृत भवन’, ‘बहिनश्री चंपाबेन वचनामृत भवन’ ऐसे त्रिविध नामाभिधानयुक्त इस अद्वितीय जिनालयकी शोभाकी क्या बात ! ऊपरकी वेदीमें पांच फूटके विशाल गुलाबी पाषाणके वर्तमान चौबीसीके प्रथम आदिनाथ भगवान, धातकीविदेहके भावि भगवान और जम्बू भरतके भावि भगवान विराजित हैं। नीचे मंडलाकार नंदीश्वर द्वीपके 52 बीचमें पंचमेरूके 80 भगवान है। मंदिरकी नीचेकी दिवारों पर संगमरमरके शिलापट्ट पर ‘पूज्य गुरूदेवश्रीके वचनामृत’ हैं तथा ऊपर की दिवारों पर ‘बहिनश्रीके वचनामृत’ उत्कीर्ण किए गये है।
ऊपरकी दिवालों पर उत्कीर्ण पट्टोंके बीचमें आदिनाथ भगवानके दस भव, धातुकीखंड द्वीपमें तीर्थंकरोंके दस भव, पूज्य सद्-गुरूदेवश्री कानजीस्वामीके नव भव, ओमकार एवं नंद्यावर्तकी सुंदर चित्रावलियोंकी रचना है। नीचेकी दिवारों पर कहानगुरू जीवनदर्शन, मल्लिनाथ भगवानका पूर्वभव, महावीर भगवानके दस भव, धरसेनाचार्यादिक दर्शनीय चित्रावलि है। बीचमें 8 x 8 का अध्यात्म सत्पुरूष कानजीस्वामीका विशाल चित्र एवं उनकी जीवनगाथा उत्कीर्ण है। दरवाजोंमें अष्टमंगलकी नक्काशी है तो छतमें देव एवं हाथी प्रभु अर्चना करने आते दिखाई देते हैं। प्रत्येक पहाड़ के मंदिरोंमें सोनेका काम किया गया है। अति विशाल ऐसे नंदीश्वर मंदिरमें प्रवेश करते ही आगंतुकको अत्यंत शांतिका अनुभव होता है मानों यहाँसे वापिस ही न जाएँ। यह मंदिर प्रतिदिन भक्तोंके स्तुति-गान-पूजासे गूंजता रहता है।
पंचमेरू-नंदीश्वरकी रचना शास्त्रविधिसे की गई है। इसके लिए पूज्य बहिनश्रीका स्मरणज्ञान तो था ही पर उनके ज्येष्ठ बंधु वजुभाईने त्रिलोकसारादिमेंसे विषयका संपूर्ण अभ्यास किया और नापके अनुसार पहाड़-मंदिर बनवाए हैं। वचनामृत उत्कीर्णताके लिए पंडितरत्न हिम्मतभाईका बड़ा योगदान रहा।
अहा ! जैसा अजोड़ पंचमेरू-नंदीश्वर जिनालय वैसाही अजोड़ प्रतिष्ठा महोत्सव ! यह मंगल महोत्सव वि.सं.2041(ई.स.1985) फाल्गुन कृष्णा एकमसे सप्तमी तक मनाया गया। उस समय (शिलान्यास विधि समय) पूज्य गुरूदेवश्रीका 91वाँ वर्ष था अतः मंदिरकी ऊँचाई 91 रखी गई है।
पूज्य गुरूदेवश्रीकी उपस्थितिमें पंचकल्याणक महोत्सव अद्भुत होते ही थे परंतु उनके पश्चात् का यह पहला प्रतिष्ठा महोत्सव भी उनके प्रभावना योगसे भव्य था। विधि-विधान शुद्ध आम्नाय अनुसार हो और प्रतिष्ठा पाठके आधारसे ही हो। इस हेतुसे पूज्य बहिनश्रीने स्वयंस्फूरणासे ब्र.चंदुभाईको प्रतिष्ठाविधिका आदेश दिया व सारी प्रतिष्ठाविधिका मार्गदर्शन भी दिया। प्रत्येक प्रसंगकी तैयारियाँ पूज्य भगवती बहिनश्री चंपाबेनके निर्देशनसे ही होती थी। विधिनायक भगवानके वस्त्राभूषण हो या आदिनाथ भगवानकी भवावलि, नांदिविधान, ध्वजकलश, सोलह स्वप्ने, रथयात्राएँ निकालना या पंचकल्याणकके समय विविध कार्यक्रमोंकी प्रस्तुति सभीमें पूज्य माताजी निर्देश करती एवं प्रत्येक कल्याणकके समय उपस्थिति रहती थीं।
परम पूज्य गुरूदेवश्रीके पुण्य-प्रतापसे एवं पूज्य बहिनश्रीकी भावनासे यह भव्य महोत्सव अति आनंदसे हुआ।
पंचमेरू नंदीश्वर बना, भावि जिनवरजी विराजित है। आदिनाथ प्रभु अरू जिनवरवृंद, रत्नजड़ित वचनामृत हैं।।