भारतदेशके सौराष्ट्र प्रदेशमें एक सुंदर रमणीय ग्राम है जो ‘सोनगढ़’ के नामसे प्रसिद्ध है। यह वर्तमानकालके अध्यात्मविद्याके उत्कृष्ट ज्योतिधर पूज्य गुरूदेवश्री कानजीस्वामीकी साधनाभूमि है। वीर सं. 1991 (ई.स.1935) में पूज्य गुरूदेवश्री यहाँ पधारे और दिगंबर जिनधर्मकी विजयपताका फहराई। यहाँसे स्वानुभूतिकी प्रधानता सह यथार्थ मुक्तिमार्ग प्रकाशित हुआ। उत्तरोत्तर यहाँ स्वाध्यायमंदिर, विदेहक्षेत्रके सीमंधर भगवानका मंदिर, सीमंधर भगवानका समवसरण, मानस्तंभ, प्रवचनमंडप, परमागममंदिर और नंदीश्वर जिनालयकी रचना हुई हैं। स्वाध्यायमंदिर उनके निवास एवं प्रतिदिनके प्रवचनकक्षरूपमें बना है। परम तारणहार पूज्य गुरूदेवश्री द्वारा ‘द्रव्यकी स्वतंत्रता एवं ज्ञायककी विशुद्धता’ का संदेश देश-विदेशमें प्रसरित हो गया। लोग हजारोंकी संख्यामें सोनगढ़ आने लगे।
स्वात्मानुभवी बहिनश्री चंपाबहिनके जातिस्मृतिज्ञानने परम पूज्य गुरूदेवश्रीका भावि तीर्थंकरत्त्व प्रसिद्ध किया। आज यहाँ नित्य बसनेवाले मुमुक्षुओंकी बड़ी संख्या है। बाहरके हजारों यात्री दर्शनार्थ आते हैं और सोनगढ़ से प्रसारित तत्त्वज्ञान समझनेका प्रयत्त्न करते हैं। जैसे ‘स्वतः प्रमाणं-परतः प्रमाणं’ ऐसा बोलता हुआ तोता जिस घरके दालानमें हो वह शंकराचार्यका घर ऐसा अन्यमें आता है, वैसे जहाँ आबालवृद्ध ‘चैतन्य-चैतन्यकी’ चर्चा करते हो, जहाँका कण-कण ‘पुरूषार्थ-पुरूषार्थ’ की ही प्रेरणा देता हो वह कानजीस्वामीका सोनगढ़”।
पूज्य गुरूदेवश्रीके हृदयकी प्रत्येक धडकनमें ‘सत्-सत्’ ‘ज्ञान-ज्ञान’ ही धबकता रहा, मैं एक सत् पदार्थ हूँ, मेरा ज्ञानरूपी सत् सबसे अलग है ऐसा जिनका आदर्श जीवन था, और उसी जोरमें निकलती वाणी-वज्रवाणीसे कायरोंके हृदय तो सिहर उठते परंतु भव्यात्त्माका मिथ्यात्त्व नाश हो जाता और मुक्ति प्राप्तिमें असाधारण निमित्त बनती।
सोनगढ़ ग्राम ‘सुवर्णपुरी तीर्थधाम’ बन गया; जहाँ परमकृपालु पूज्य गुरूदेवश्री कानजीस्वामी एवं तद्-भक्त स्वात्त्मानुभवी प्रशममूर्ति बहिनश्री चंपाबेनने वर्षों तक निवास किया; व अनुभवभीनी वाणी बरसाई, ऐसी गुरूदेवश्रीसे शोभित-पावन हुई यह सुवर्णनगरी, धन्य है, स्वाध्यायमंदिर धन्य है। गुरूदेवश्री परम पुरूष थे। उनकी वाणी चैतन्यको जगानेवाली थी। उनके चैतन्यकी क्या बात ! उनकी पवित्रता और पुण्यकी शोभा न्यारी ! जहाँ महापुरूष बसे और विचरण करे वह भूमि तीर्थस्वरूप है। गुरूदेवने सोनगढ़का कण-कण पावन किया वर्षों तक यहाँ वास किया इसलिए यह भूमि पावन तीर्थ है।
परमोपकारी पूज्य गुरूदेवश्री कानजीस्वामी एवं तद्-भक्त भगवती पूज्य बहिनश्री चंपाबेनके धर्मसाधना प्रभावसे सुवर्णपुरी ‘तू परमात्त्मा है’, ‘तू भगवान आत्मा है’ के नादोंसे सदा गूंजती रहती है, जो भव्योंको निरंतर आत्मार्थकी प्रेरणा देती रहती है। आत्मप्राप्तिकी भावनाकी मुख्यता रखकर जिनमंदिरोंमें पूजा, भक्ति नित्य होते हैं। प्रतिवर्षमें 12 बडे-बडे विधान रचकर पूजा की जाती है। पूज्य गुरूदेव एवं पूज्य बहिनश्रीकी जन्म-जयंति, सम्यक्तत्त्व जयंति विशेष समारोहपूर्वक मनाई जाती है। इसके अतिरिक्त दशलक्षणी पर्व, अष्टाह्निका, दीपावली आदि खूब भावनासह मनाये जाते हैं। रथयात्राओंका आकर्षण कुछ अलग ही प्रतीत होता है। इन सभी उत्सवोंकी श्रृंखलामें हजारों मुमुक्षु सोनगढ आते हैं निज कल्याणकी वाणी सुनकर धन्यता अनुभव करते हैं। वर्षमें तीन बार शिक्षणशिबिरका आयोजन होता है, जिसमें अनेक शास्त्रोंके रहस्य जो पूज्य गुरूदेवने उद्-घाटित किए वह समझाये जाते हैं।
सोनगढ़ में आवास एवं भोजनके लिए श्री दिगंबर जैन स्वाध्यायमंदिर ट्रस्टकी ओरसे उत्तम व्यवस्था है। पूज्य गुरूदेवश्रीकी प्रवचन भक्तिकी केसेट, लाखों शास्त्र, मूल शास्त्र एवं प्रवचन साहित्य अल्प किंमत पर विक्रिय विभागसे प्राप्त होते हैं।
तो आईए आप भी सुवर्णपुरी तीर्थधाममें – निज कल्याण हेतु – अवश्य पधारकर लाभ लीजिए।
अनूभूति तीर्थमहान, सुवर्णपुरी सोहे,
यह कहान-गुरू वरदान, मंगल मुक्ति मिले।।